भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इज़्ज़तपुरम्-87 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
रेलवे स्टेशन है
या गड़बड़झाला
ताड़ में चोर
गश्त पर पुलिय
सड़े हुए आटे की
गरमागरम कचौड़ियाँ
सुस्ताती गाड़ियाँ
भिखारिनें भी जु्रगाड़ में
जिनके पास
जिस्म की रंगत या
तुरुप का पत्ता
वही हर बार गिरे