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इजोरिया धनुकाइन / राजकमल चौधरी
Kavita Kosh से
बाढ़ि डूबल खेत के ऋजु आरि
रक्त-सागरमे जेना दहाइत हो तरुआरि
खेतक आरि...
जइ पर उगि रहल अछि दूबि
जेना मरणकाल मुस्कान लइ छइ अधरपुटके छबि
हरित, टटका दूबि...
जइ पर उगि रहल अछि पथिक चरणक छाप
मृत्यु-सन अभिशाप
एकस्वरा बइसले अछि प्रतीक्षा-मग्न
बाढ़ि डूबल खेतमे कय स्वप्न सभटा भग्न
अक्षयदेहा, देह-रस मातलि
मुदा, दू साँझसँ भूखलि-पिआसलि
इजोरिआ धनुकाइन
(आइ कहतइ गाम सउँसे ‘वेश्या’ काल्हि कहतइ ‘डाइन’)
जकर पतिदेवता पड़एलइ मोरंग
अकालक समय देलकइ ने दुइओ दिवस किछु ओ संग
विरहाग्नि नइँ, जठराग्निसँ झरइत छइ सभ अंग
जकरा जिन्नगी पर उगि रहल अछि दूबि
जेना मरणकाल मुसकान लइ छइ अधरपुटकेँ छूबि
झरकएल, पाकल दूबि...
जइ पर उगि रहल अछि पथिक चरणक छाप
युगक बड़का पाप...