भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इण रो कांई / इरशाद अज़ीज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुण जाणै कैड़ो होसी
आवण आळो बगत
अर औ बैवतो बगत
कीं नीं कैवै
कांई कैवै अर किणनैं कैवै
कोई सुणै जद नीं!

घाल लो कानां मांय तेल
करो सुणी अणसुणी
इण रो कांई
औ चालतो रैसी
अर छोडतो रैसी
आपरा अेलांण।