इतना अँधियारा इतनी तेज़ हवा / नरेन्द्र दीपक
बुझता दिया जले
इतना अँधियारा इतनी तेज़ हवा
ऐसे मौसम की खोजो कहीं दवा
ऐसा कुछ तो करो कि फिर वासंती हवा चले
हर आँगन उजियारा हो
हर देहरी दिया जले
धरती हुई उदास गगन से अँधियारा बरसे
अचरज की यह बात रास्ता राही को तरसे
कोलाहल संन्यासी बन कर निकल गया घर से
हर चेहरा चुप्पी साधे है जाने किस डर से
चारों ओर धुँध छाई है चारों ओर धुआँ
कोई किरण शलाखा लाओ तम की षिला गले
जगमग दिया जले
सुमन सभी मुरझाये कलियाँ सिसक-सिसक रोयें
कौन गुलाब यहाँ रोंपे सब नागफनी बोयें
किसको है अवकाष किसी का दुख कोई ढोये
धन्यवाद उस माली को जो आँख खोल सोये
चमन हुआ बीमार रोग का पता नहीं लगता
किसी चरक को खोजो रे ये दुख की साँझ ढले
सुख का दिया जले
भटक रही पीढ़ी गति में अलगाव आ गया है
किसी रेल के नीचे जैसे पाँव आ गया है
अँधियारा चल कर किरणों के गाँव आ गया है
हर चेहरे पर काजल का बिखराव आ गया है
मौसम ने चन्दा के मुख पर कालिख मल दी है
कोई जुगनू खोजो रे जो उजियारा उगले
बुझता दिया जले