भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतना तय है / राम सेंगर
Kavita Kosh से
रँगभेद-पाखण्ड धरम के —
तोप-तमँचे-बम ।
इतना तय है
हर क़ीमत पर
बचे रहेंगे हम ।
भाँग नहीं
यह आग लगी है
दीखे अन्धे को भी ।
रेर नहीं
सक्रिय बचाव की
दौड़ रहे हैं तो भी ।
समय देवता ने तोड़े
क़दमों के सभी भरम ।
इतना तय है
हर क़ीमत पर
बचे रहेंगे हम ।
तने हुए
चाकू का सच है
सच है जीवन का भी ।
बन्द अक़ल के
ताले में
लग गई जुगत की चाभी ।
बाजा नहीं लहर है भीतर
नाच रही छम-छम ।
इतना तय है
हर क़ीमत पर
बचे रहेंगे हम ।