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इतना भी शोर तू न ग़म-ए-सीना चाक कर / जगन्नाथ आज़ाद
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इतना भी शोर तू न ग़म-ए-सीना चाक कर
इश्क़ इक लतीफ़ शोला है इस को न ख़ाक कर
ऐ दिल हुज़ूर-ए-दोस्त ब-सद एहतिराम जा
दामन को चाक कर न गिरेबाँ को चाक कर
दौर-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ की तारीकियों को धो
जल्वों से उन के अपना जहाँ ताब-नाक कर
डर है कहीं मैं शौक़-ए-फ़रावाँ से मर न जाऊँ
ऐ जज़्बा-ए-तरब न मुझे यूँ हलाक कर
आज़ाद इस से पहले के उन पर नज़र पड़े
अश्कों से धोके अपनी निगाहों को पाक कर