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इतना सब कुछ / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
मैंने उस वृक्ष को
बहुत देर तक ढूँढ़ा
जो उस शाम अपने
अनगिनत फलों से लदा
हम पर छाया रहा
एक बड़े आशीर्वाद-सा
वह वृक्ष वहाँ नहीं था
मैंने उस हवा को
बार-बार अपनी साँसों में खींचा
जो ठीक एक वर्ष पहले
इसी शाम,
दौड़ी थी हमारे बीच
ताँबे की तारों में दौड़ रही विद्युत-सा
वह हवा वहाँ नहीं थी
मैंने गेट के बाहर आ
उस वाहन को बहुत तलाशा
जो उस दिन आतुर खड़ा हुआ था
हमें उड़ा ले जाने को
सड़कों-सड़कों, सड़कों-सड़कों
वाहनों से रास्ता बिल्कुल खाली था
क्या तुम बता सकते हो कि
इतना सब कुछ कैसे मरता है
जब मरता दो के बीच
प्यार का रिश्ता?