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इतना ही नमक (कविता) / त्रिलोक महावर
Kavita Kosh से
चार[1] के फलों
की खट्-मिठास से
मुँह बिचकाती
नोनी
फोड़ रही है नन्हीं-नन्हीं गुठलियाँ
पत्थर के
बीच
कभी पिस जाती हैं
चिरोंजी गुठली के साथ
तो कभी पत्थर से टकराकर
पत्थर
उगल देते हैं चिंगारी
बमुश्किल
निकले हैं साबुत दाने
नोनी
जानना चाहती है
इतनी मेहनत से
एक पायली[2] चिरोंजी
के बदले
अब भी क्यों मिलेगा
इतना ही नमक