भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतनी-सी इल्तिजा है चुप न बैठिए हुज़ूर / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
इतनी-सी इल्तिजा है चुप न बैठिए हुज़ूर
अन्याय के खिलाफ़ हैं तो बोलिए ज़रूर
मुश्किल नहीं है दोस्तो बस ठान लीजिए
गर सामने पहाड़ है तो तोड़िए ग़ुरूर
देखा है का़तिलों को सरेआम घूमते
दोषी निजा़म ही नहीं मेरा भी है कुसूर
ऐसे ख़ुदा का क्या करूँ जो बुत बना रहे
बोले न कुछ सुने न कुछ रहे भी दूर-दूर
बदले की भावना नहीं अपने मिज़ाज में
दुश्मन के वास्ते भी नहीं पालते फ़ितूर
साक़ी यही है क्या तेरा इन्साफ़ बता भी
खाली किसी का जाम है कोई नशे में चूर