इतने टुकड़ों में बँट गया हूँ मैं
खुद का कितना हूँ सोचता हूँ मैं
ये हुनर आते आते आया है
अब तो ग़ज़लों में ढल रहा हूँ मैं
हो असर या न हो किसे परवाह
काम सजदा मेरा दुआ हूँ मैं.
कैसे बाजार में गुजर होगी
बस यही सोचकर बिका हूँ मैं
इतने टुकड़ों में बँट गया हूँ मैं
खुद का कितना हूँ सोचता हूँ मैं
ये हुनर आते आते आया है
अब तो ग़ज़लों में ढल रहा हूँ मैं
हो असर या न हो किसे परवाह
काम सजदा मेरा दुआ हूँ मैं.
कैसे बाजार में गुजर होगी
बस यही सोचकर बिका हूँ मैं