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इतवार / नाज़िम हिक़मत
Kavita Kosh से
आज इतवार है
पहली बार मुझे ले जाया जाएगा सूरज की रोशनी में।
और पहली बार मैं जीवन में हक्का-बक्का रह जाऊँगा
कि आकाश मुझसे इतनी दूर है,
इतना नीला है वो,
और इतना विशाल।
मैं वहाँ खड़ा रहूँगा बिना हिले-डुले।
फिर मैं बड़ी श्रद्धा के साथ बैठ जाऊँगा वहाँ ज़मीन पर
और उस सफ़ेद दीवार को पढ़ूँगा।
किसे परवाह है उन लहरों की
जिनमें लिपटना चाहता हूँ मैं
मेरे संघर्ष से, आज़ादी से और इस समय मेरी पत्नी से
किसी को क्या लेना-देना
किसे फ़िक्र मेरी ज़मीन की, सूरज की और मेरी...
मैं ख़ुश हूँ, कितना ख़ुश हूँ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय