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इताब ओ क़हर का हर इक निशान / ज़क़ी तारिक़
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इताब ओ क़हर का हर इक निशान बोलेगा
मैं चुप रहा तो शिकस्ता मकान बोलेगा
अभी हुजूम है उस को जुलूस बनने दे
तेरे ख़िलाफ़ हर इक बे-ज़ुबान बोलेगा
हमारी चीख़ कभी बे-असर नहीं होगी
ज़मीं ख़मोश सही आसमान बोलेगा
जो तुम सुबूत न दोगे अज़ाब के दिन का
गवाह बन के ये सारा जहाँ बोलेगा
कभी तो आएगा वो वक़्त भी 'ज़की' तारिक़
यक़ीन बन के हमारा गुमान बोलेगा