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इतिहास का जहर / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
सदियों पहले बहे खून को
अभी भी सूखने नहीं दे रहे हैं लोग।
इतिहास का जहर
खुद भी पी रहे हैं,
औरों को भी पीने को दे रहे हैं लोग।
दोहराई जा रही हैं
एक लड़ाई से दूसरी लड़ाई तक की कहानियाँ।
दौड़ाई जा रहीं हैं
पिछली मौतों की धीरे-धीरे चलती परछाइयाँ।
दौड़ाई जा रही हैं
पिछली मौतों की धीरे-धीरे चलती परछाइयाँ।
सभ्यता के अंधेरों की ये अन्तहीन यात्राएँ
कहीं फिर से ऐसे दिन न ले आएँ
जब आम सड़कों पर हों,
आवाम की हत्याएँ!
इतिहास से होकर आए हैं
ये खून से लथपथ रास्ते
फिर लकीरों में लहू छोड़ेंगे
अगली पीढ़ियों के वास्ते
वसीयतों में बंटता रहेगा
इसी तरह इतिहास का जहर
वक्त की बढ़ती हुई सरहदों पर
इसी तरह बसते रहेंगे
पुरानी मौतों के नये-नये घर।
पुरानी मौतों के नये-नये घर।