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इतिहास की एक 'अगर' / चीनुआ एचेबे

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ज़रा सोचो, हिटलर अगर अपनी जंग जीत जाता
हमारी इतिहास की क़िताबें आज धपड़-चपड़ होतीं,
फ़तह के फ़ैसले से लबालब अमरीकियों ने
एक जापानी कमाण्डर को, युद्ध-अपराधी के बतौर
सूली पर चढ़ा दिया,
एक पीढ़ी बाद एक बेचैन उँगली उनकी पसलियों में धँसी हुई,
हमें अपने अमरीका को, वियतनाम में उसके
हत्यारे ख़ूनी कारनामों के लिए सूली पर चढ़ाना होगा ।

मगर आज हरेक को जानना होगा कि सूली
एक पीड़ित से बढ़कर, प्रत्यक्ष अपराध के बोझ से
लदी होने के बावजूद, बहुत कुछ निगल जाती है,
क्योंकि एक विवेकहीन हत्या के लिए भी
ज़रूरी है -- एक विजेता ।

ज़रा सोचो, हिटलर अगर जुए की बाजी जीत जाता
कैसी अफ़रा-तफ़री दुनिया में मच जाती !
चैनलवार के उसके कट्टर शत्रु को
युद्ध-अपराधों के लिए मरना होता,
और जहाँ तक हैरी ट्रुमेन का सवाल है,
हिरोशिमा का वह खलनायक...

हाँ, हिटलर अगर अपनी जंग जीत जाता, तो
द' गाल पर दोबारा मुक़दमा चलाने की ज़रूरत न होती
उसे पहले ही पेरिस ने फ़्राँस के साथ दग़ाबाज़ी के लिए
मौत की सज़ा नहीं सुना दी थी !
अगर हिटलर जीत जाता
बिडकुन किस्लिंग नार्वे के प्रधानमंत्री के पद पर
काबिज़ हो गया होता --
अगर हिटलर जीत जाता...