भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतिहास के पृष्ठों पर / अनिल कार्की
Kavita Kosh से
धार<ref>पहाड़ी</ref> पर सूरज चढ़ने से पहले
बकरियों के खुर के निशानों में
खिलेगा ओस का फूल
पीतलिए खाँकर<ref>पीतल की घण्टी</ref> की धुन में
नाचेगी गौरैया,
आहा!
कैसा समय है यह
उदासियों के कोख में जो बच्चे पल रहे हैं
वे बड़े होंगे एक दिन
अपनी कंचों भरी जेबों में समय को ठूँसते हुए
पार करेंगे उम्र
बनेंगे प्रेमी / प्रेमिकाएँ
दिलाएँगे उम्र भर साथ निभाने का विश्वास
एक दूसरे को
पहचानेंगे ख़ामोशी की जुबाँ
उदासियों का मतलब
जेबों से निकालेंगे समय
और कंचों की तरह बिखेर देंगे
इतिहास के पृष्ठों पर
शब्दार्थ
<references/>