भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतिहास हमारे नाम / बाल गंगाधर 'बागी'
Kavita Kosh से
दास्तां गुलामी की अगर पूछिये हमसे
आख में दहकता शोला जलाना होगा
बारूद की होली में खंजर की पिचकारी
घोड़ों की टाप से, सजा गुलशन मिटाना होगा
बुनियाद के नीचे बिछी बारूदी सुरंगे
खून से लाशों की दरिया बहाना होगा
यह कौन अपने घर को वीरान कर दिया
अब साजिश की किताबों को खोज लाना होगा
आंखों की बात कानों के रास्ते भूलोगे
राख बारुद को वापस ही लाना होगा
मेरे वजूद को खण्डर बनाने वालों को
याद की शूली पर फिर से चढ़ाना होगा
अकसर बुलंदी का क्यों नाम मेरे खाई है
इन्हीं गहराइयों से हमें खोज लाना होगा
मिटाओ पत्थर से हाथों की लकीरें सब
अब जमीं आसमां पे हक सम्मान पाना होगा