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इत्रवाले / नेहा नरुका

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वे आए इस तरह कि फैल गई पूरे क़स्बे में सुगन्ध ही सुगन्ध
सबने पूछा कहाँ से आए हो,
वे बोले मथुरा से
सबने पूछा क्या लाए हो,
वे बोले इत्र :
गुलाब का इत्र,
चमेली का इत्र,
बेला का इत्र,
चन्दन का इत्र,
राधा के अधरों का इत्र
जिसमें घुल गई कृष्ण के अधरों से निकली लार …

वे कपड़ों से सुगन्ध इस तरह चिपका जाते कि
कई-कई दिनों तक वह सुगन्ध उसी जगह बनी रहती
याद दिलाती रहती उनके बूढ़े बदन से आती सुगन्ध
वे पोंछ देते किसी स्त्री के दुपट्टे से चन्दन की महक वाले हाथ

बहुत से लोग कहते कि ठग हैं वे
मीठी-मीठी बातें करके भोली-भाली औरतों और आदमियों से ऐंठ ले जाते हैं पैसे

इत्र बेचने वाले गद‍गद होते हुए आते,
गदगद होते हुए जाते
उनके कपड़े होते बेहद साधारण, बहुत मैले, उनके पास होता चमड़े का एक बैग
और छोटी-छोटी दो ग्राम, तीन ग्राम, पाँच ग्राम और दस ग्राम की काँच की शीशियाँ

उन शीशियों में रात के अन्धेरे में घोला जाता इत्र
ठहर-ठहरकर ली जाती ख़ुशबू
और याद किए जाते बिछड़े प्रेमी और प्रेमिकाएँ
याद किए जाते वे पल जिनमें एक साधारण से मनुष्य ने
एक साधारण से मनुष्य के साथ रचाया था रास

जब दुबारा मिलन होता
तो भेंट किए जाते अपनी-अपनी पसन्द के इत्र
इस इत्र से महबूब को नहलाया जाता
फिर गहरी-गहरी सांस लेकर बसाया जाता
उसे अपने ज़ेहन में हमेशा-हमेशा के लिए

वियोग के दिनों में वह सुगन्ध साथ देती
इस तरह जैसे वियोगी और वियोगिनी के सखी और सखा देते हैं साथ

नींद आ जाती
दुख हल्के पड़ जाते
चेहरे चमक उठते
इत्र वाले सिर्फ़ इत्र कहाँ से लाते थे,
लाते थे मथुरा से इत्र में चुपचाप घोलकर एहसास
ज़िन्दगी को ख़ूबसूरत, मानीख़ेज़ बनाकर
क़स्बे की सबसे खटर्रा बस में बैठकर
लौट जाते किसी दूसरे शहर की यात्रा पर इत्रवाले

बड़े मौज़ू क़िस्म के लोग थे इत्रवाले
जहाँ जाते थे ख़ुशबू बिखेर देते थे ।