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इत्र / अविनाश मिश्र

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मैं ऐसे प्रवेश चाहता हूँ तुम में
कि मेरा कोई रूप न हो
मैं तुम्हें ज़रा-सा भी न घेरूँ
और तुम्हें पूरा ढँक लूँ