भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इधर तेरी उधर तेरी, बताओ है किधर मेरी / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इधर तेरी उधर तेरी, बताओ है किधर मेरी।
बराबर है कहीं से लो, बचा जो है उधर मेरी।।

कहावत यह पुरानी है, नई कुछ बात बतलाओ।
कभी तकरार मत करना, जवानी की उमर मेरी।।

जवानी तो विवादित है कभी चढ़ती कभी ढलती।
करो अभिमान मत इतना अभी मजबूत कमर मेरी।

अभी है वक्त बनने की बिगड़ने की इसे जानो।
समझ लो देश मेरा है जहाँ की हर शहर मेरी।।

जहाँ चाहो वहाँ जाओ मगर एक बात मत भूलो।
हिफाजत देश की करना ग़ज़ल की है बहर मेरी।।