इनिस्फ़्री की लेक आइल / सरिता शर्मा / विलियम बटलर येट्स
मैं अब उठ कर इनिस्फ्री जाऊँगा,
और वहाँ मिट्टी और बेंत का एक छोटा सा झोंपड़ा बनाऊँगा;
वहाँ मैं सेम की नौ क्यारियाँ और मधुमक्खी के लिए एक छत्ता बनाऊँगा,
और मैं मधुमक्खी के शोर वाली पेड़ों से ख़ाली जगह में अकेला रहूँगा ।
और मुझे वहाँ कुछ शान्ति मिलेगी, क्योंकि शान्ति धीमे से उतरती है,
सुबह का पर्दा गिराने से उतरती है जहाँ झींगुर गाते हैं;
वहाँ पूरी आधी रात जगमगाती है, और दोपहर बैंगनी चमकयुक्त है,
और शाम लिनेट के पँखों से भरी है ।
मैं अब उठकर जाऊँगा, क्योंकि रात-दिन हमेशा
मैं किनारे से टकराते हुए झील के पानी की धीमी आवाज़ों को सुनता हूँ;
जब मैं सड़क या धूसर फुटपाथ पर खड़ा हूँ,
मैं इसे दिल की गहराई में सुनता हूँ ।
मूल अँग्रेज़ी से सरिता शर्मा द्वारा अनूदित
लीजिए अब पढ़िए यही कविता मूल अँग्रेज़ी में
William Butler Yeats
The Lake Isle of Innisfree
I will arise and go now, and go to Innisfree,
And a small cabin build there, of clay and wattles made:
Nine bean-rows will I have there, a hive for the honey-bee;
And live alone in the bee-loud glade.
And I shall have some peace there, for peace comes dropping slow,
Dropping from the veils of the morning to where the cricket sings;
There midnight’s all a glimmer, and noon a purple glow,
And evening full of the linnet’s wings.
I will arise and go now, for always night and day
I hear lake water lapping with low sounds by the shore;
While I stand on the roadway, or on the pavements grey,
I hear it in the deep heart’s core.