भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इन्तज़ार / हरे प्रकाश उपाध्याय
Kavita Kosh से
क्या वह दिन कभी आएगा
जब हरचरना भी पेट भर पाएगा
सबकी आवाज़ में आवाज़ मिला अमन का गाना गाएगा
वह दिन कब आएगा
जब हरचरना का बेटा भी साहेब के स्कूल में पढ़ने जाएगा
जब वह भी साहेब बन संसद पर अपनी पतंग उड़ाएगा
मनचाहे कोई नौकरी से उसे निकाल नहीं पाएगा
कोई मालिक कोई गुलाम नहीं रह जाएगा
आखिर वह दिन कब आएगा
जब हरचरना भी साहेब के संग कुर्सी पर बैठ बतियाएगा
कोई बड़ा कोई छोटा नहीं रह जाएगा
हर हाथ कमाएगा
हर मुँह पेट भर खाएगा
दिन वह कब आएगा
जब नहीं बुधिया का बेटा उपास रह जाएगा
वह भी कटोरी भर दूध पाएगा
कोई भूखा नहीं रह जाएगा
कोई नंगा नहीं छूट जाएगा
लूटेरा जब कोठियों में नहीं, जेल में रह पाएगा
क्या वह दिन सचमुच में आएगा
आखिर वह दिन कब आएगा ?