भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इन्तसाब / ब्रजेन्द्र 'सागर'
Kavita Kosh से
इन्तसाब<ref>समर्पण</ref>
उन सबको
जो माज़ी<ref>भूतकाल</ref>में जी रहे
हाज़िर<ref>वर्तमान</ref>को
फ़र्दा<ref>भविष्य</ref>की
सौगात हैं
और
तुमको' भी
शब्दार्थ
<references/>