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इन्द्रधनुष हो गये सयाने / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

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सोने के सिंहासन बैठे
कुटिया के
ऊपर धनु ताने
नोन तेल लकड़ी की कीमत
राजमहल वाले क्या जानें

गंगाजल
देना था जिनको
मय की बोतल लिये मिले वो
प्रहरी थे
जो राजनगर के
सेंध लगाते हुये मिले वो

गज गज भर की लम्बी बातें
इंच इंच भर की मुस्कानें

जिनके बल पर
यज्ञ रचा था
हवन दृव्य वो मिले चुराते
याज्ञिक भी
खंडित मंत्रों के
मिले मुग्ध हो जाप सुनाते

चेहरा एक मुखौटे सौ-सौ
इन्द्रधनुष हो गये सयाने

अनुदानों की
सौगाते ले
अश्रु पोंछने को निकले जो,
सबकी नज़र
बचाकर अपनी
जेबें लगे स्वयं भरने वो

एक हाथ में जाल, दूसरा
डाल रहा चिड़ियों को दाने