इन्द्रावती / अनुज लुगुन
यह कहना आज गुनाह होगा कि
इन्द्रावती में तैर रही लाशों का अपना पक्ष है
चूँकि यह समय ही ऐसा है कि
आप नदी में डूबते रहें
और आपके जीवित होने का भ्रम बना रहे ।
नदी में हर कोई तैर नहीं सकता
तैरने के लिए कला नहीं, साहस चाहिए
जिनमें साहस नहीं होता, वे लाइफ़ जैकेट का सहारा लेते हैं
इस तरह धीरे-धीरे हाथ पैर सिकुड़ते हैं और आवाज भी दब जाती है ।
इन्द्रावती में तैरना आसान नहीं है
यह जंगल-पहाड़ों की नदी है
और ऐसी नदियों का रास्ता आदिवासियों के घरों तक जाता है
कवि केदारनाथ सिंह कह गए कि
नदियाँ शहरों का आरम्भ होती हैं और शहर नदियों का अ्न्त
तो क्या पानी में तैरती लाशें
नदियों के पक्ष में शहर के खिलाफ़ थीं ?
क्या उनका यही पक्ष है ?
या, इसका कोई दूसरा अर्थ भी है
जिसे अन्तरराष्ट्रीय व्यापारिक संगठन तय करते हैं ?
यह बहुत कठिन समय है —
यह कहने के लिए कि
नदियों को बचाना है,
शहादत के रास्ते चलना होगा
जो चलेंगे वे मारे जाएँगे अपने ही वंशसूत्रों के द्वारा
और उनकी लाश भी एक दिन नदियों में तैर रही होगी
इन्द्रावती में तैर रही लाशें उसका शोक नहीं हैं
वे अपराधी नहीं थे कि उसके लिए वह शर्मिन्दा हों
यह इतिहास की अधूरी व्याख्या है कि
जो विपक्ष में गए वे देशद्रोही कहलाए
आन्तरिक सुरक्षा का मतलब यह तो नहीं कि
इतिहास की ग़लत व्याख्या बढ़ती जाए
और दफ़न कर दिया जाए ज़िन्दा सबूतों को
इन्द्रावती से खतरा है उन लोगों को
जो राष्ट्रीय अपराध में शामिल हैं
जिन्होंने पानी की आज़ादी
सेंसेक्स के साँड़ के आगे गिरवी रख दी है
(वही तो है हत्याओं और फर्जी मुठभेड़ों का सरगना
अक्सर वह लाल रंग देख कर भड़क उठता है)
और कितनी लाशें तैर सकती हैं इन्द्रावती में
और कितनी पीढ़ियाँ शामिल होंगी राष्ट्रीय अपराध में
इन्द्रावती के लोगों के सवाल पुराने हैं
उनकी उम्र शेयर मार्केट से ज़्यादा है
नदियों के नाम पर वे
कहीं भी फिर से पैदा हो सकते हैं ।