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इन्सान अब लगने लगा हैवान की तरह / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
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इन्सान अब लगने लगा हैवान की तरह
करने लगा हर काम वो शैतान की तरह
सोचा न था वो इस क़दर निकलेगा बेवफ़ा
पूजा था जिसे उम्र भर भगवान की तरह
था हादसों में हाथ आपका ही तो जनाब
फिर पूछते हैं आप क्यों अनजान की तरह
ज़िन्दादिली का नाम ही होता है ज़िन्दगी
जीना है तो बन कर जियो तूफ़ान की तरह
होता नहीं है रास्ता हमवार उम्र का
यह ज़िन्दगी है जंग के मैदान की तरह
मंजिल से प्यार है तो न क़दमों को रोकिए
होगा न कुछ भी बैठ कर बेजान की तरह
रूक जाएगा किसी दिन साँसों का कारवाँ
इन्सान हो मिल कर रहो इन्सान की तरह