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इन्हें उम्र भर / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

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पेंड़ नहीं ये
पुरखे अपने
आदर देना इन्हें उम्र भर

मानव के आने से पहले
स्वागत में हैं खड़े हुए ये
पढ़े लिखे हो तुम्हें पता है
हमसे कितना बड़े हुए ये

फूल बिछाते
छाँव बाँटते
फल देते ये हमें उम्र भर

नदी सलोनी पास गाँव के
सबको देती सुखद नीर है
सभी इसी का जल पीते हैं
राजा जनता संग फकीर हैं

नदी नहीं यह
देह रक्त है
आदर देना इसे उम्र भर

और हवाएँ जो लहराकर
हरे खेत की फसल झुलायें
खुशबू लातीं बादल लातीं
हँसती मिलतीं सभी दिशायें

पवन नही यह
प्राण –साँस हैं
आदर देना इसे उम्र भर