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इन उतां का सांग देख थरी क्यूं अकल बैहरी सै / मेहर सिंह

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खामखां क्यूं खर्चा ठाओ थारै के फैहरी सै।
इन उतां का सांग देख थरी क्यूं अकल बैहरी सै।टेक

बीस घरां तै चून मांग कै दस का ढे़ड बुलाए
फलसे कै म्हां बालक बोले देखो सांगी आए
ताता पाणी कर्या डेग मैं अपणे हाथ न्हवाऐं
करी कुशामंद खातिरदारी भर भर होक्के प्याये
घी बूरा और चून साग की लगी झड़ी गैहरी सै।

मात पिता चाचा ताऊ से कती नहीं शर्माते
उल्टी सीधी कैहण लागज्यां कैह कै पोप ख्जिाते
वेदों के पढ़ने वाले आज टूक नाच कै खाते
टूम सजा दें स्याही घालैं तेलै नई तील पैहरी सै।

कपड़े पहर खड़या हुया तखत पै चौगरदै नाड़ घुमाई
पाच्छे सी नै बहाण बैठ जा आगे सी नै भाई
ऐड मार झट ढुंगा मार्या चारों आंख मिलाई
सारयां म्हां नै सैन मारज्यो जरा शर्म ना आई
एक बहाण की साहमी नाचै नाचणुआं तै शर्म कड़ै रैंहरी सै।

दादी चाची ताई की ये कोन्या छांट करैं सैं
ईज्जत और आबरू नै कती बारा बाट करैं सैं
इन ऊतां की कुशामन्द क्यूं ये डुबे जाट करै सैं
मेहर सिंह की सुणो रागणी पाछे तै काट करैं सैं
सांगी लुच्चें ऊत बताऐ या न्यूं पबलक कैहरी सैं।