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इन ग़रीबों के लिए घर कब बनेंगे / राकेश जोशी
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इन ग़रीबों के लिए घर कब बनेंगे
तोड़ दें शीशे, वह पत्थर कब बनेंगे
कब बनेंगे ख़्वाब जो सच हो सकें
और चिड़ियों के लिए पर कब बनेंगे
लो, बन गए सुंदर हमारे शहर सब
पर, हमारे गाँव सुंदर कब बनेंगे
शर्म से झुकते हुए सर हैं हज़ारों
गर्व से उठते हुए सर कब बनेंगे
योजनाओं को चलाने को तुम्हारे
वो बड़े बंगले, वह दफ़्तर कब बनेंगे
आज तो संजीदगी से बात की है
अब ये सारे लोग जोकर कब बनेंगे
कब तलक कचरा रहेंगे बीनते यूं
तुम कहो, बच्चे ये अफ़सर कब बनेंगे