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इन दिनों / अनिल त्रिपाठी
Kavita Kosh से
इन दिनों नहीं लिखी
कविताएँ और चिट्ठियाँ
आलेख तो दूर की बात है
हाँ टी० वी० पर ख़बर सुनता रहा ।
और सब कुछ
जलते हुए देखता रहा ।
आते रहे अनर्गल विचार
बुदबुदाता रहा अपने से
कि सामने वाले पर जड़ दूँ
दो-चार तमाचे
और भरी भीड़ में उसे गाली दूँ ।
क्योंकि उसने
लोकतन्त्र के गंजे सिर पर
चोट की है
और चुरा लिया है
सर्वधर्म समभाव वाला
उसका विचार ।