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इन दिनों / प्रियंका पण्डित
Kavita Kosh से
बहुत मामूली दोपहरें हैं
इन दिनों मेरे पास
दरवाज़ों पर जो धूप टपकती थी
मायूस-सी चुप खड़ी है
हवाएँ दस्तक देने के पहले ही
बेहद शुष्क हो जाती हैं
शहर तो वैसा ही है
-बीतता हुआ-
कश्मीर की भारी बर्फ़बारी के बाद
हाँ, मौसम थोड़ा ठण्डा होता जा रहा है
मैं बेहद मामूली दोपहरों में बन्द हूँ
तुम कहाँ हो?