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इन हवाओं में / नीरजा हेमेन्द्र
Kavita Kosh से
पहले एक खूशबू थी, अब भी एक गन्ध है इन हवाओं में,
जाने कब से इन्सान बन्द है, इन हवाओं में।
दिल के दरवाजे क्यों बन्द कर रखें हैं हमनें,
खोलने के लिए तमाम जगहें हैं इन हवाओं में,।
आने दो इक ताजा हवा का झोंका,
एक ताजगी -सी भरी है इन हवाओं में।
अब तो यारों खोल दो तमाम खिड़कियाँ,
अल्हड़ युवा -सी रोशनी है इन हवाओं में।
वो नाम, उपमायें जिन्हे हम भूल चुके हैं,
लगता है वो सब बन्द हैं इन हवाओं में।
बेजान हुई चीजों पर पड़ने दो नेह का रंग,
नफरतें मिट जायेंगीं कोई जंग नही है इन हवाओं में।