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इम्तिहान / मनीष मूंदड़ा

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जि़ंदगी ने झकझोरा बहुत
झुकाया
तोड़ा
सताया बहुत
आँसुओं की सूखी लकीरों से
समय के थपेड़ों में उलझी
जालों की शक्ल लिए झुर्रियों से
पूछो
मेरी हँसी को कहाँ कुछ कर पाए तुम?
मुझे हँसने से कहाँ रोक पाए तुम?