भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इरादे जिस दिन से उड़ान पर हैं / प्रकाश बादल
Kavita Kosh से
इरादे जिस दिन से उड़ान पर हैं।
हजारों तीर देखिये कमान पर हैं।
लोग दे रहे हैं कानों में उँगलियाँ,
ये कैसे शब्द आपकी जुबां पर है।
मेरा सीना अब करेगा खंजरों से बगावत,
कुछ भरोसा सा इसके बयान पर हैं।
मजदूरों के तालू पर कल फिर दनदनाएगा,
सूरज जो आज शाम की ढलान पर है।
झुग्गियों की बेबसी तक भी क्या पहुंचेगी,
ये बहस जो गीता और कुरान पर है।
मजदूर,मवेशी, मछुआरे फिर मरे जाएंगे,
सावन देखिये आगया मचान पर है,
मक्कारों और चापलूसों से दो चार कैसे होगा,
तेरे पैर तो अभी से थकान पर है ।