भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इल्मों बस करीं ओ यार / बुल्ले शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इल्मों बस करीं ओ यार

इक्को अलफ तेरे दरकार,
इल्मों बस करीं ओ यार।

जान्दी उमर नहीं इतबार,
इल्मों ना आवे विच्च शुमार।

इक्को अलफ तेरे दरकार
इल्मों बस करीं ओ यार।

इल्मों मीआँ जी कहावें,
तम्बा चुक्क चुक्क मन्डी जावें।
धेला लै के छुरी चलावें,
एह ताँ वड्डी जुल्म दी कार।
इल्मों बस करीं ओ यार।

इल्मों शेख मसाइख<ref>शेख़</ref> कहावें,
उल्टे मसले घरे बणावंे।
बेइल्माँ नूँ लुट्ट खावें,
उल्टे झूठे करें इकरार।
इल्मों बस करीं ओ यार।

बहुता इल्म अज़राईल<ref>फरिश्ते का नाम</ref> ने पढ़िआ,
झुग्गा झाया ओहदा सढ़िआ।
तोक लाअनत दा गल पढ़िआ,
ओड़क चल्लिआ बाज़ी हार।
इल्मों बस करीं ओ यार।

उमर गुज़ारी विच्च मसीतीं,
अन्दर भरेआ नाल पलीतीं<ref>मैल</ref>।
वाहद नीयत इक ना कीती,
ऐवें कीती हाल पुकार।
इल्मों बस करीं ओ यार।

पढ़ पढ़ लिख लाए ढेर,
पए कुरआन किताब चुफेर।
गिरदे चानण विच्च अन्धेर,
पुच्छो राह दी खबर ना सार।
इल्मों बस करीं ओ यार।

ज्यों ज्यों पढ़दा इल्म वधेरे,
त्यों त्यों पैन्दें झगड़े झेड़े।
माही जावे परे परेरे,
होन्दी जिन्दो जिन्द पुकार।
इल्मों बस करीं ओ यार।

ज्यों खोजी नूँ खोज अगेरे,
इल्म वी आड़क परे परेरे
हरदम फिरदी मौत चुफेरे,
जाणे नहीं मरद गवार।
इल्मों बस करीं ओ यार।

इल्मों पए हजाराँ फस्ते,
राही अटक रहे विच्च रस्ते।
सारे हिजर दे बेदिल खस्ते,
प्या विछोड़े दा सिर भार।
इल्मों बस करीं ओ यार।

शब्दार्थ
<references/>