भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इशारे मुद्दतों से कर रहा है / ज़हीर रहमती
Kavita Kosh से
इशारे मुद्दतों से कर रहा है
अभी तक साफ़ कहते डर रहा है
बचाना चाहता है वो सभी को
बहुत मरने की कोशिश कर रहा है
समंदर तक रसाई के लिए वो
ज़माने भर का पानी भर रहा है
कहीं कुछ है पुराने ख़्वाब जैसा
मेरी आँखों से ज़ालिम डर रहा है
ज़माने भर को है उम्मीद उसी से
वो ना-उम्मीद ऐसा कर रहा है