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इश्क़ को तक़लीद से आज़ाद कर / एहसान दानिश
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इश्क़ को तक़लीद से आज़ाद कर
दिल से गिरया आँख से फ़रियाद कर
बाज़ आ ऐ बंदा-ए-हुस्न मजाज़
यूँ न अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर
ऐ ख़यालों के मकीं नज़रों से दूर
मेरी वीराँ ख़ल्वतें आबाद कर
नज़अ में हिचकी नहीं आई मुझे
भूलने वाले ख़ुदा-रा याद कर
हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख
अपनी इक तर्ज़-ए-नज़र ईजाद कर
इशरत-ए-दुनिया है इक ख़्वाब-ए-बहार
काबा-ए-दिल दर्द से आबाद कर
अब कहाँ ‘एहसान’ दुनिया में वफ़ा
तौबा कर नादाँ ख़ुदा को याद कर