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इश्क़ में सब्र ओ रज़ा दरकार है / वली दक्कनी
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इश्क़ में सब्र ओ रज़ा दरकार है
फ़िक्र-ए-असबाब-ए-वफ़ा दरकार है
चाक करने जामा-ए-सब्र-ओ-क़रार
दिल-बर-ए-रंगीं क़बा दरकार है
हर सनम तस्ख़ीर-ए-दिल क्यूँकर सके
दिल-रुबाई कूँ अदा दरकार है
ज़ुल्फ़ कूँ वा कर के शाह-ए-इश्क़ कूँ
साया-ए-बाल-ए-हुमा दरकार है
रख क़दम मुझ दीदा-ए-ख़ूँ-बार पर
गर तुझे रंग-ए-हिना दरकार है
देख उस की चश्म-ए-शहला कूँ अगर
नर्गिस-ए-बाग़-ए-हया दरकार है
अज़्म उस के वस्ल का है ऐ 'वली'
लेकिन इमदाद-ए-ख़ुदा दरकार है