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इष्ट एक ही / कविता भट्ट

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हरिचरण
बसे निवृत्त वह,
पढ़े जो गीता
भय-शोक दूर हो
पुण्य महान
धरे सर्वदा ध्यान;
गीता अध्येता
प्राणायाम-साधक
हो पापमुक्त
नित्य प्रति ज्यों होता
निर्मल दिन
संसार के मल भी
नष्ट हों ऐसे;
हरि ने गाई स्वयं
पद्ममुख से;
गीता सम्मुख-व्यर्थ
शास्त्र विस्तार
यह सर्व सुधा-सा
भारत भू का-
पीकर न हो पीड़ा
पुनर्जन्म की ,
करो नित संधान
वक्ता विष्णु ही;
उपनिषद् सारे;
गाय- समान-
दुहे गोपाल जिसे
पी तृप्त पार्थ
निर्विकार हो सुधी
वत्स समान;
एक ही शास्त्र -ज्ञान
कृष्ण भी एक
मन्त्र नाम ये ध्यान
इष्ट एक ही
देवकीसुत जान
सेवा कर लो ध्यान।