भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इससे पहले कि वो / पवन करण
Kavita Kosh से
इससे पहले कि वो
मुझे क़त्ल कर दे
मैं उसे उन उड़ानों के बारे में
बतलाना चाहता हूँ
मेरे भीतर जिन्होंने
अपने ठिये बना रखे हैं
मैं उससे उन थकानों की
बात करना चाहता हूँ
जो मेरी छाँव में अपने
जिस्म बिछाए लेटी हैं
मैं उन यात्राओं को लेकर
उसके सामने अपनी चिंता
रखना चाहता हूँ
जिनकी राह में
मैं निशान की तरह लगा हूँ
मैं उसे उन साँसों से
मिलवाना चाहता हूँ
जिन्होंने अपनी ज़रूरतों में
मुझे बसा रखा है
वो धारदार निग़ाह
जो लगातार मेरा
पीछा कर रही है
चाहता हूँ कुछ देर
मेरे पास आकर बैठे