इस अनजान शहर में / सुरेन्द्र स्निग्ध
इस अनजान शहर में
कहाँ-कहाँ ले जाइएगा
किन-किन कवि-लेखकों से
मिलाइएगा आप
मेरे पास
बहुत कम है समय
थोड़ी ही देर में
खुल जाएगी
ठसाठस भरी हुई बस
छोटी अटैची
एक ब्रीफ़केस
और कई छोटे-मोटे सामान
के साथ
मेरी पत्नी खड़ी होंगी
बस-स्टैण्ड पर
व्यग्रता से कर रही होंगी
मेरी प्रतीक्षा
लम्बी बीमारी से उठी हैं वे
पैरों में प्रतीक्षा की
नहीं है बहुत ताक़त
ठीक सात बीस पर
खुलती है बस
सात दस होने को है
रास्ता है एकदम अनपहचाना
जाना है बहुत दूर !
मुझे लेकर जिस सड़क से
जा रहे हैं आप
क्या यह पहुँचती है
बस स्टैण्ड ?
देखिए, आगे तो यह सड़क
समाप्त हो जाती है
शुरू हो जाता है कच्चा रास्ता
धूल और कीचड़ से भरा हुआ,
आगे जाकर
एक अनजान क्षितिज पर
समाप्त हो रहा है यह रास्ता
किसी दूसरी सड़क से चलिए
जल्दी चलिए !
आपने जिस सड़क पर
मोड़ दिया है स्कूटर
यह भी तो जर्जर है
जगह-जगह गड्ढे हैं
बदबूदार कीचड़ों से भरे हुए
यह सड़क भी
हो रही है शहर से दूर
बाहर-बाहर पता नहीं
कहाँ तक जाती है यह
मरी हुई सड़क
लीजिए, पंक्चर कर गया
स्कूटर का चक्का
स्टेपनी भी नहीं है साथ
अब तो असम्भव है
पहुँचना बस स्टैण्ड
किस मनःस्थिति में होगी
मेरी पत्नी
कितना डर, कितना भय
घिर गया होगा उसके गिर्द
इस अनजान शहर में
जरूर घिर गई होंगी
गुण्डों, बदमाशों के बीच
कितनी असुरक्षा महसूस
कर रही होंगी वे !
नहीं,
फिर कभी नहीं आऊँगा
इस अनजान शहर में ।