भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस कथन से उस कथन तक / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस कथन से उस कथन तक देख आया
आचरण ढूँढ़े न मिलता-
आदमी में।

दूसरों को ढालने के लिए व्याकुल,
किन्तु साँचे में स्वयं ढलता नहीं है;
आज का यह आदमी पारे सरीखा,
दिख रहा है तरल पर हिलता नहीं;
इस चरण से उस चरण तक देख आया
सन्तुलन ढूँढे न मिलता आदमी में।
हृदय से वक्तव्य का सम्बन्ध यह है
फूल जैसे तेज कैंची पर खिला हो,
सत्य उस दर्पण सरीखा है अभागा
जो किसी नाराज बन्दर को मिला हो,
इस गठन से उस गठन तक देख आया,
संगठन ढूँढ़े न मिलता आदमी में।
अब अगर ईश्वर मिलें तो यह कहूँ मैं
एक मेरा भी जरा सा काम कर दो,
जब न श्रद्धा प्रेम या विश्वास कुछ भी
जिन्दगी का नाम कोई और रख दो;
इस नयन से उस नयन तक देख आया
करुण मन ढूँढ़े न मिलता आदमी में।