संयोगों की लकड़ी पर
इधर पालिश नहीं चढ़ी है
किसी भी खरका से उलझकर
टूट सकता है सूता ।
यह इधर की कथा है
इसमें मृत्यु के आगे-पीछे कुछ भी तै नहीं है ।
संयोगों की लकड़ी पर
इधर पालिश नहीं चढ़ी है
किसी भी खरका से उलझकर
टूट सकता है सूता ।
यह इधर की कथा है
इसमें मृत्यु के आगे-पीछे कुछ भी तै नहीं है ।