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इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की / फ़राज़
Kavita Kosh से
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इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार उससे मैनें बेवफ़ाई की
वरना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में
या तो टूट कर रोया या ग़ज़लसराई की
तज दिया था कल जिन को हमने तेरी चाहत में
आज उनसे मजबूरन ताज़ा आशनाई की
हो चला था जब मुझको इख़्तिलाफ़ अपने से
तूने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हमनवाई की
तन्ज़-ओ-ताना-ओ-तोहमत सब हुनर हैं नासेह के
आपसे कोई पूछे हमने क्या बुराई की
फिर क़फ़स में शोर उठा क़ैदियों का और सय्याद
देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की