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इस जगत को सार दे दो / ऋता शेखर 'मधु'
Kavita Kosh से
हे विनायक एकदंता!
इस जगत को सार दे दो॥
क्यों भरा हिय में हलाहल, क्यों दिखे बिखरे कपट छल।
सोच में संस्कार दे दो, सतयुगी अवतार दे दो॥
हे गजानन बुद्धिदाता!
ज्ञान का विस्तार दे दो॥
इस जगत को सार दे दो॥
खो रहीं संवेदनाएँ, भूलती मधुरिम ऋचाएँ।
साज को झंकार दे दो, वर्ण को ओंकार दे दो॥
हे चतुर्भुज देवव्रत प्रभु!
सृष्टि को आधार दे दो॥
इस जगत को सार दे दो॥
देखते दिन-रात सपना, हो गुरु यह देश अपना।
योग का आचार दे दो, वेद का सत्कार दे दो॥
भीम भूपति विघ्नहर्ता!
स्वप्न का साकार दे दो॥
इस जगत को सार दे दो॥
सत्य की भी साधना हो, धर्म की आराधना हो।
प्रीत का उद्गार दे दो, सुरमई संसार दे दो॥
हे मनोमय मुक्तिदायी!
अल्प को आकार दे दो॥
इस जगत को सार दे दो।