भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस तरह हर शख़्स को हस्सास होना चाहिए / सूरज राय 'सूरज'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस तरह हर शख़्स को हस्सास होना चाहिए.
बस पराए दर्द का आभास होना चाहिए॥

आज तक महलों में तूने ख़ूब की अय्याशियां
रौशनी अब तो तेरा संन्यास होना चाहिए॥

देख कैकई सल्तनत न राम को दे ग़म नहीं।
पर ज़रूरी क्या उसे वनवास होना चाहिए॥

पेश्तर फांसी से इक पापी ने दुनिया से कहा
ख़्वाहिशों को आदमी का दास होना चाहिए॥

लाख़ उफना ले समन्दर की ख़ुशामद में लहर
पर किनारों का ज़रा-सा पास होना चाहिए॥

मयक़दे की बोतलों से आ रही है ये सदा
ग़म हो या कि हो ख़ुशी बिंदास होना चाहिए॥

ये दिलों के बादशा का है जनाज़ा ऐ अज़ल
क़ब्र में भी इंतज़ाम अब ख़ास होना चाहिए॥

आज बेटे के बदन में कुछ हरारत आ गई
माँ यक़ीनन कल तेरा उपवास होना चाहिए॥

दिल के हर कमरे में हर गोशे में जिसका दख़्ल हो
एक ये रिश्ता किसी से ख़ास होना चाहिए॥

नाज़ हर दुल्हन करे जब भी सुने लफ़्ज़े-बहू
कुछ नहीं बस माँ सरीखी सास होना चाहिए॥

किसके आने से अमावस रूह "सूरज" हो गई
कोई कबिरा सूर या रैदास होना चाहिए॥