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इस बयाबाँ में अपना बन के पुकारे कोई / मोहम्मद इरशाद
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इस बयाबाँ में अपना बन के पुकारे कोई
मुझको धड़कन की तरह दिल में उतारे कोई
यूँ तो हर शख़्स को शिकवा है ज़िन्दगी से मगर
मजा तो जब है कि हर हाल में गुज़ारे कोई
आईना देख के इतराना बड़ा आसाँ है
झाँक के ख़ुद में अगर ख़ुद को सँवारे कोई
छटपटाता ही वो रह जाता है दरिया देखो
डूबती कश्ती जब लग जाये किनारे कोई
लोग ‘इरशाद’ यूँ ही शोर किया करते हैं
कौन है आये मुकाबिल जो हमारे कोई