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इस बार जलाएँ दीप / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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इस बार जलाएँ दीप
जहाँ हो सबसे ज़्यादा तम
झालर की टिमटिम-टिमटिम से
बल्बों की जगमग-जगमग से
ये फीके-फीके लगते हैं
दीपक फबते हैं
जहाँ रोशनी होती सबसे कम
बस हाय हलो करते हैं जो
क्या ख़ुशियों को बाँटेंगे वो
छोडें यह औपचारिकताएँ
हम उनसे बाँटें ख़ुशी
जिन्हें हो सबसे ज़्यादा ग़म
गुझिया, पापड़, पूड़ी, सिंवई
लड्डू, पेड़ा, पेठा, बर्फ़ी
जितनी मर्ज़ी उनता खाएँ
पर जिन्हें मिले
यह सबसे कम
उनको मत भूलें हम