भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस बियावान में / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
जो जानता हूँ
वह सच नहीं है
जो सच है
उसे जान नहीं पाया हूँ
यहाँ फकत रीतापन है।
सवालों के कांटों को
नहीं बुहार पाया
कोई समाधान,
भला आधे-अधूरे विश्वासों
खंडित आस्थाओं के भरोसे
कभी मिले हैं भगवान ?
कब तक भटकुँगा
इस बियावान में।