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इस भारत म्हं दुनिया तै एक ढंग देख लिया न्यारा / ज्ञानी राम शास्त्री

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इस भारत म्हं दुनिया तै एक ढंग देख लिया न्यारा
खाज्या घणा कबज होग्या एक भूखा मरै बेचारा

एक जणे की चढ़ी किराये कई कई बिल्डिंग कोठी
एक जणे नै मिलै रहण अनै कोन्या एक तमोटी
एक जणे की खा खा मेर्वे हुई दूंदड़ी मोटी
एक जणे नै पेट भराई कोन्या मिलती रोटी
एक जणा बैठा गद्दी पर दे रहा एक सहारा

एक जणे कै दस दस नौकर सब पर हुक्म चलाता
एक जणे नै नौकर भी कोय घर मैं न नहीं लगाता
एक जणा न्हा धोके सिर म्हं इतर फलेल लगाता
एक जणे नै न्हाणे नै भी नीर मिलै ना ताता
एक फिरै कारां म्हं दूजा भटकै मारा मारा

एक जणा दे खर्च लाख पर करता नहीं पढ़ाई
एक जणा पढ़णा चाहवै पर फीस किते ना थ्याई
एक जणे कै बीस वर्ष में दो दो तीन लुगाई
एक जणे की उमर बीत गई कोन्या हुई सगाई
दस पोशाक एक पै दूजा नांगा करै गुजारा

एक जणे के घर म्हं आवै अन्धा धुन्ध कमाई
एक जणे के घर म्हं कोन्या जहर खाण नै पाई
एक जणे कै बीस आदमी करते मन की चाहे
एक जणे के घर म्हं कोन्या बतळावन नै भाई
“ज्ञानी राम” पता ना कद यू फर्क मिटैगा म्हारा