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इस भीड़ में वो याद पुरानी भी कहीं है / रवि सिन्हा

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इस भीड़ में वो याद पुरानी भी कहीं है
दाइम<ref>चिरन्तन (eternal)</ref> दहर<ref>काल, युग (time, era)</ref> में लम्हा-ए-फ़ानी<ref>क्षणभंगुर (momentary)</ref> भी कहीं है

शुरुआत की लपटें हैं अभी तेज़ उठेंगीं
फिर देखना इस आग में पानी भी कहीं है

इस बुत में नुमूदार<ref>प्रकट (to appear)</ref> तो है हुस्ने-तसव्वुर<ref>कल्पना (imagination)</ref>
पत्थर पे तशद्दुद<ref>हिंसा (violence)</ref> की निशानी भी कहीं है

कच्ची सी तिरी धूप में पिघले के न पिघले
गो बर्फ़ में दरिया की रवानी भी कहीं है

तरतीबे-अनासिर<ref>पंचतत्व (elements)</ref> में तसव्वुर का उभरना
शोरिश<ref>उपद्रव (disorder, chaos)</ref> में मशीनों के म'आनी<ref>अर्थ (meaning)</ref> भी कहीं है

नाकाम रहा या के हुआ ग़र्क़े<ref>डूबा हुआ (drowned)</ref>-तग़ाफ़ुल<ref>उपेक्षा (indifference, neglect)</ref>
दरिया-ए-अबद<ref>समय की अनन्त नदी (the river of infinite time)</ref> मेरी कहानी भी कहीं है

ख़ुरशीद<ref>सूरज (the sun)</ref> कभी थे तो सहर<ref>सुबह (morning)</ref> फिर से करेंगें
तारों को मगर रात बितानी भी कहीं है

शब्दार्थ
<references/>